सैम बहादुर: 7 गोलियां खाकर मौत को हराया, देश के लिए लड़े 5 युद्ध, PM की बात काटने का रखते थे दम

सन 1942 के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक भारतीय सिपाही को एक जापानी सिपाही ने अपनी मशीनगन से सात गोलियां मारीं. गोलियां भारतीय जवान की आंतों, जिगर और गुर्दों में उतर गयीं. जवान गिर पड़ा. उसे मृत समझ लिया गया किन्तु उसकी सांसें उसका साथ छोड़ने को तैयार नहीं थीं. वो जवान इतने गंभीररूप से घायल हो चुका था कि उसके कमांडर मेजर जनरल कोवान ने उसी समय अपना मिलिट्री क्रॉस उतार कर उसके सीने पर इसलिए लगा दिया क्योंकि उसके मरने के बाद उसे मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जा सकता था.

समझ लिया गया था मरा हुआ

वो जवान इस तरह से घायल हो चुका था कि उसे उसी हालत में छोड़ कर आगे बढ़ने का आदेश दे दिया गया. उसे साथ ले कर पीछे हटने पर बटालियन की गति धीमी पड़ जाती. लेकिन ये बात उस जवान के अर्दली को मंजूर नहीं थी. उसने जवान को कंधे पर उठा लिया और पीछे पीछे चल पड़ा. उस जवान की हालत को देख कर सभी डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए. उन्हें उसका इलाज करना समय की बर्बादी लग रहा था.

अर्दली शेर सिंह ने बचाई जान

इतने में वो अर्दली जो जवान का घायल शरीर उठा कर यहां तक लाया था, ने अपनी राइफल तान कर डॉक्टर से कहा “हम अपने अफ़सर को जापानियों से लड़ते हुए अपने कंधे पर उठा कर लाए हैं. हम नहीं चाहेंगे कि वह हमारे सामने इसलिए मर जाएं क्योंकि आपने उनका इलाज नहीं किया. आप उनका इलाज करिए नहीं तो मैं आप पर गोली चला दूंगा.”

डॉक्टर का मन अब भी नहीं मान रहा था मगर सामने एक जूनूनी इंसान उस पर राइफल ताने खड़ा था इसीलिए अनमने मन से उसने जवान के शरीर में धंसी हुई गोलियां निकलीं और उसकी आंत का क्षतिग्रस्त हिस्सा काट कर हटा दिया. इतना करने के बाद भी डॉक्टर को ज़रा सी उम्मीद नहीं थी कि वो जवान बचेगा लेकिन उस जवान को अभी मरना नहीं था. यही कारण था कि वो आश्चर्यजनक रूप से बच गया. स्थिति थोड़ी सामान्य होते ही उस जवान को पहले मांडले ले जाया गया, फिर रंगून और फिर वापस भारत लाया गया.

वो जवान थे सैम मानेकशॉ

सात गोलियां खाने के बाद भी जीने की जिद पर अड़ा हुआ वो जवान था लेफ़्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ. वही सैम मानेकशॉ जिन्हें 1971 में इंडो पाक युद्ध का हीरो कहा जाता है. और उनका अर्दली जो उन्हें बचा के लाया था, उसका नाम था सूबेदार शेर सिंह. अगर उस दिन शेर सिंह ने हिम्मत और लेफ़्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ के प्रति अपना समर्पण ना दिखाया होता तो शायद हमें एक ऐसा सैनिक अफसर ना मिलता जिसे दुश्मनों या हुक्मरानों के सामने सही बात बोलते हुए जरा सी भी हिचक महसूस नहीं होती थी.

पांच युद्धों का हिस्सा बने थे सैम बहादुर

3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे सैम मानेकशॉ का पूरा नाम था सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ. लेकिन उनका पूरा नाम शायद ही किसी को याद हो. उनके साथ अफसर हों या उनके परिवार वाले, यहां तक कि उनके अभिभावक तक उन्हें सैम या सैम बहादुर ही कह कर पुकारते थे. सैम मानेकशॉ ने करीब चार दशक फौज में गुजारे और इस दौरान पांच युद्ध में हिस्सा लिया. फौजी के रूप में उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रिटिश इंडियन आर्मी से की थी. इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में भी उन्होंने हिस्सा लिया था. 1971 की जंग में उनकी बड़ी भूमिका रही. इस जंग में भारतीय फौज की जीत का खाका भी खुद मानेकशॉ ने ही खींचा था.

1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम को बिजी कौल के स्थान पर चौथी कोर की कमान सौंपी गई. पद संभालते ही सैम ने सीमा पर तैनात सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा था, “आज के बाद आप में से कोई भी तब तक पीछे नहीं हटेगा, जब तक आपको इसके लिए लिखित आदेश नहीं मिलते. ध्यान रखिए यह आदेश आपको कभी भी नहीं दिया जाएगा.”

सही के आगे किसी की नहीं सुनी

अनुशासन या सैनिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच संबंधों की बात आने पर सैम कोई समझौता नहीं करते थे. सैम अपनी यूनिट के अफसरों के सम्मान को लेकर कभी समझौता नहीं करते थे. भले ही सामने कोई बड़े से बड़ा अधिकारी क्यों ना बैठा हो वो अपनी बात कहने से कभी नहीं डरते थे. एक बार सेना मुख्यालय में एक बैठक हो रही थी.

रक्षा सचिव हरीश सरीन भी वहां मौजूद थे. उन्होंने वहां बैठे एक कर्नल से कहा, ‘यू देयर, ओपन द विंडो.’ वह कर्नल उठने लगा. तभी सैम ने कमरे में प्रवेश किया. रक्षा सचिव की तरफ मुड़े और बोले, सचिव महोदय, आइंदा से आप मेरे किसी अफ़सर से इस टोन में बात नहीं करेंगे. यह अफ़सर कर्नल है. यू देयर नहीं.” उस जमाने के बहुत शक्तिशाली आईसीएस अफ़सर हरीश सरीन को उनसे माफ़ी मांगनी पड़ी.

जब काट दी थी पीएम की बात

अपनी बात को ले कर सैम कभी पीछे नहीं हटे भले सामने कोई भी हो. बात 1971 की लड़ाई की है. इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च में ही पाकिस्तान पर हमला कर दें लेकिन सैम ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. इसका कारण यही था कि उन्हें ये बात अच्छे से मालूम थी कि भारतीय सेना अभी हमले के लिए तैयार नहीं. इंदिरा गांधी इससे नाराज़ भी हुईं. मानेकशॉ ने पूछा कि आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं. उन्होंने कहा, “हां.” इस पर मानेकशॉ ने कहा, मुझे छह महीने का समय दीजिए. मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी.

सैम के लिए सबसे गर्व की बात यह नहीं थी कि भारत ने उनके नेतृत्व में पाकिस्तान पर जीत दर्ज की. उनके लिए सबसे बड़ा क्षण तब था जब युद्ध बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वीकार किया था कि उनके साथ भारत में बहुत अच्छा व्यवहार किया गया था.

देश ऐसे वीर सपूत के बारे में आने वाली नस्लों को बताया जाना बेहद जरूरी है. ये वही लोग हैं जिनके कारण आज भारत विश्व के शक्तिशाली देशों में गिना जाने लगा है. हमें इनकी स्मृतियों और बहादुरी के किस्सों को अनमोल विरासत की तरह सहेजने की आवश्यकता है.

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Live Reporter अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Umi Patel

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