कभी बेटी के लिए जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, फिर खड़ी कर दी मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री, जानिए पद्मश्री ‘मां’ की कहानी

हाल ही में गणतंत्र दिवस के मौके पर 2022 के पद्म पुरस्कारों को घोषित किया गया है। इस बार 128 लोगों को पद्म पुरस्कारों के लिए चुना गया है। इस लिस्ट में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने वाकई देश को प्रेरणा देने का काम किया है। किसी ने सुरंग बनाकर कृषि के क्षेत्र में योगदान दिया है तो किसी ने देश सेवा में योगदान दिया है। इसी लिस्ट में शामिल है एक माँ का नाम जिसने वाकई कड़ी मेहनत से अपना नाम बनाया है।

दरअसल 2022 के पद्मश्री पुरस्कार के लिए मोइरांगथेम मुक्तामणि देवी का नाम भी चुना गया है। एक समय था जब मुक्तामणि के पास अपनी बेटिन को दिलाने के लिए जूते भी नहीं थे। लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिससे मुक्तामणि ने कड़ी मेहनत से अपनी शूज़ इंडस्ट्री को शुरू कर दिया। आज उनके प्रॉडक्ट विदेशों में भी पसंद किए जा रहे हैं। आइए जानते हैं मुक्तामणि के सफलता की कहानी।

खेती और सब्जी बेचकर चलाती थी गुजारा

महिलाओं ने हमेशा इस बात को साबित किया है वे हर क्षेत्र में अच्छा काम कर सकती हैं। आज भी ऐसी कई महिलाओं के उदाहरण हमारे सामने हैं जिन्होंने मुश्किल घड़ी में न सिर्फ अपने परिवार को संभाला बल्कि खुद का भी नाम बनाया है। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बाद सफलता को हासिल किया और आज अनेकों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। आज इस महिला की हर कोई तारीफ कर रहा है।

इनका नाम मुक्तामणि देवी है जो मणिपुर की रहने वाली हैं। मुक्तामणि का नाम पद्मश्री 2022 के लिए चुना गया है। मुक्तामणि ने अपने जीवन में हमेशा से ही कई मुश्किलों का सामना किया है। बुक ऑफ अचिवर्स के अनुसार मुक्तामणि का जन्म 1958 में हुआ था। उनके पिता का निधन हो गया था जिसके बाद उनकी माँ ने ही उन्हें पाल पोष के बढ़ा किया था। महज 16-17 की उम्र में मुक्तामणि की शादी हो गई जिसके बाद मुक्तामणि खेती बाड़ी कर और सब्जियाँ बेचकर अपना गुजारा चलाती थी।

एक घटना ने बदल दी मुक्तामणि की जिंदगी

शुरुआत में मुक्तामणि पैसे कमाने के लिए हेयरबैंड्स और झोले बुनने का काम भी किया करती थी। लेकिन फिर उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी को ही बदल दिया। दरअसल बात है 1989 की जब उनकी बेटी के जूते का सोल फट गया था। लेकिन मुक्तामणि के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे अपनी बेटी को दूसरे जूते दिला सकें। ऐसे में मुक्तामणि ने खुद ही उस सोल को सिल दिया।

लेकिन मुक्तामणि की बेटी स्कूल जाने में झिझक रही थी क्यूंकि उसे डर था कि कहीं स्कूल में टीचर उन्हें ऐसे जूते के लिए डांट न दें। मुक्तामणि कि बेटी स्कूल पहुंची और उसके टीचर ने इन जूतों को देखकर उन्हें अपने बुलाया। तब टीचर ने मुक्तामणि की बेटी से पूछा कि ये जूते किसने बनाए हैं क्यूंकि उन्हें भी एक जोड़ी ऐसे ही जूते चाहिए। बस इसी वाक्य ने मुक्तामणि की जिंदगी को ही बदल दिया।

मुक्तामणि को भी खुद के हुनर पर अब विश्वास होने लगा था और उन्होंने खुद की शूज़ इंडस्ट्री को ही शुरू कर दिया। इस शूज़ इंडस्ट्री को मुक्तामणि को नाम दिया गया। मुक्तामणि ने हाथ से बुने हुए जूते बनाने शुरू कर दिए और उन्हें प्रदर्शनियों और ट्रेड फेयर में बेचना भी शुरू कर दिया।

विदेशो में भी है भारी मांग

धीरे धीरे लोगों को मुक्तामणि के बनाए उत्पाद खूब पसंद आने लगे। आज मुक्तामणि की फैक्ट्री में हर उम्र के लोगों के लिए जूते बनाने जाते हैं। कई लोग खास उनके बनाए जूते मंगाते भी हैं। इतना ही नहीं आज उनके बनाए फूट वियर को मैक्सिको, यूके, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है। वहीं आज वे 1000 से भी ज्यादा लोगों को इस तरह के फूटवियर बनाना सिखा चुकी हैं। जो वाकई सराहनीय कार्य है।

मुक्तामणि की खास बात ये है कि उन्होंने इस बिज़नस की शुरुआत करने के साथ साथ परिवार को भी अच्छे से संभाला। हालांकि बिज़नस करने पर समाज ने भी उन पर कई ताने कसे लेकिन मुक्तामणि ने हार नहीं मानी और खुद को एक सफल बिज़नसवुमन के तौर पर पहचान दिलाई। मुक्तामणि के बनाए जूतों की खासियत है कि वे मौसम की मार से भी बचाते हैं और उन्हें आसानी से धोकर सुखाया भी जा सकता है।

इस तरह से तैयार होते हैं ये खास जूते

बता दें कि इन जूतों को ऊन से तैयार किया जाता है। जूतों को बनाने के लिए मुक्तामणि इम्फाल और स्थानीय बाज़ारों से ही ऊन खरीदती हैं। उनके मुताबिक एक जोड़ी जूते बनाने में लगभग 3 दिन का समय लग जाता है। हालांकि 30 स्टैड्स से बातचीत के दौरान मुक्तामणि ने बताया था कि स्थानीय बाज़ारों से मिलने वाली ऊन की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी नहीं है लेकिन वे कोलकाता या गुवाहाटी से ऊन नहीं खरीद सकती।

उनके इस काम में कई महिला और पुरुष कर्मचारी भी साथ देते हैं। जिसमें पुरुषों को सोल बनाने का काम दिया गया तो वहीं महिलाएं बुनाई का काम करती हैं। जानकारी के मुताबिक एक कारीगर दिन में करीब 100-150 सोल तैयार कर लेता है और उसे एक सोल के लिए 50 रूपये दिए जाते हैं। वहीं एक जूते की बुनाई के लिए कारीगरों को 30-35 रूपये दिए जाते हैं। जूतों के डिज़ाइनिंग का काम मुक्तामणि खुद ही करती हैं।

उनकी फैक्ट्री में एक दिन में करोब 10 जोड़ी जूते तैयार किए जाते हैं। मुक्तामणि के बनाए जूते पहले 200-800 के बीच बिकते थे लेकिन अब इनकी कीमत 1000 रूपये तक हो चुकी है। वहीं वे लोगों को मुफ्त में बुनाई का काम भी सिखाती हैं ताकि लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Live Reporter अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Umi Patel

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