भगवान की खंडित मूर्तियों से ग़रीब बच्चों के लिए खूबसूरत खिलौने बना रही है नासिक की वक़ील, तृप्ति

हमें पार्क्स की बाउंड्री पर, पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे, मंदिर के गलियारे में, इमारतों की छतों पर और भी कई जगहों पर खंडित मूर्तियां दिख जाती हैं. जो लोग मूर्तियों का विसर्जन नहीं कर पाते वो भी मूर्तियों को कहीं भी रख आते हैं. कभी-कभी तो सड़क किनारे और यहां तक कि कूड़े के ढेर में भी मूर्तियां मिल जाती हैं. पूजा-अर्चना के लिए मूर्तियां घर तो ले आते हैं लेकिन कुछ दिन घर पर रखकर इंसान उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देते हैं. इस व्यवहार से हमारे पर्यावरण को काफ़ी नुकसान पहुंचता है लेकिन इंसान बाज़ नहीं आते.

एक ज़माने में मूर्तियां सिर्फ़ मिट्टी की बनाई जाती थी, ऐसी मूर्तियां आसानी से जल में विसर्जित हो जाती हैं क्योंकि मिट्टी की बनी होती थी. बदलते दौर के साथ ख़तरनाक केमिकल्स, प्लास्टर ऑफ़ पैरिस, थर्मोकॉल, सिंथेटिक कलर्स आदि वस्तुओं से मूर्तियां बनाई जाती हैं जो विसर्जित करने के बाद भी जस की तस रहती है. इन वस्तुओं से पर्यावरण को कितनी हानि पहुंचती है ये हम सभी जानते हैं.

इस सूरत को बदलने का ज़िम्मा लिया है नासिक की तृप्ति गायकवाड़ ने. पेशे से वक़ील तृप्ति अपनी संस्था, संपूर्णम सेवा फ़ाउंडेशन के ज़रिए इस छवि को बदलने की कोशिश कर रही हैं.

क्या करती हैं तृप्ति?

तृप्ति की संस्था खंडित मूर्तियों को, किसी भी धर्म की मूर्तियों, लकड़ी के फ़्रेम्स आदि को रिसाइकल करके बस्ती में रहने वाले, भीख मांगने वाले, ग़रीब बच्चों के लिए खिलौने बनाती है. यही नहीं, वो मूर्तियों को रिसाइकल करके आवारा पशुओं और परिंदों के लिए फ़ीडिंग बाउल भी बनाती हैं.

ऐसे हुई नेक काम की शुरुआत

तृप्ति का घर गोदावरी नदी के तट से लगा हुआ था. एक दिन उन्होंने देखा कि एक आदमी लकड़ी के फ़ोटो फ़्रेम नदी में फेंक रहा है. तृप्ति ने उस आदमी को रोका और उससे कहा कि वो उन फ़्रेम्स को रिसाइकल करेंगी. यहीं से संपूर्णम सेवा फ़ाउंडेशन की शुरुआत हुई.

सोशल मीडिया की मदद ली

तृप्ति ने अपने पिता से आर्थिक मदद ली और ये नेक काम शुरु कर दिया. सोशल मीडिया हथियार का इस्तेमाल करते हुए तृप्ति ने अपनी संस्था के बारे में लोगों को बताया और उनसे खंडित मूर्तियां, फ़ोटो फ़्रेम्स आदि मांगे. पहले ही हफ़्ते में तृप्ति को पॉज़िटिव रेस्पॉन्स मिला. आज महाराष्ट्र के कई शहरों से लोग तृप्ति तक खंडित मूर्तियांं आदि पहुंचा रहे हैं. कंपनी रिसाइकल करने के लिए सिर्फ़ 50 रुपये चार्ज करती है. तृप्ति ने बताया कि उनकी टीम इस बात का ख़ास ख़याल रखती है कि किसी की भी धार्मिक भावना आहत न हो.

तृप्ति ने बताया कि मूर्तियों से प्लास्टर ऑफ़ पैरिस निकालकर उनसे कई तरह के खिलौने बनाए जाते हैं. संस्था ने कुछ रिसाइक्लिंग यूनिट्स से टाइ अप किया है जहां लकड़ी के फ़्रेम भेजे जाते हैं. बड़े फ़्रेम्स से पक्षियों के लिए घर बनाया जाता है. हल्का सिमेंट मिलाकर प्लास्टर ऑफ़ पैरिस से स्ट्रे डॉग्स के लिए खाने की कटोरी बनाई जाती है.

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Live Reporter अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Umi Patel

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